Jaishankar Prasad Jivan Parichay (जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय)

Jaishankar Prasad Jivan Parichay

जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) आजतक के हिंदी साहित्य के महानतम कवियों एवं लेखकों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और ये हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों (सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पन्त एवं जयशंकर प्रसाद) में से एक थे।

आधुनिक हिंदी साहित्य और हिंदी रंगमंच से जुड़े सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व जयशंकर प्रसाद का जन्म वर्ष 1889 में 30 जनवरी और वर्ष 1937 में 14 जनवरी को हुआ था। उन्होंने बहुत कम उम्र से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्हें अपने घर पर शतरंज खेलने और बागवानी का काम करने का भी शौक था। वे वेदों में काफी हद तक रुचि रखते थे, जिसने उन्हें अपनी कविता, नाटक, कहानियां और उपन्यास लिखने के लिए बेहद प्रभावित किया।

उन्होंने अपने जीवन के मध्य करियर को उपन्यास, नाटक और कविताएँ लिखकर बिताया। उन्होंने स्वयं को संस्कृत और संस्कृत से संबंधित अन्य भाषाओं से अत्यधिक प्रभावित किया। उनकी कविता का विषय रोमांटिक से लेकर राष्ट्रवादी तक, उनके युग के विषयों के पूरे क्षितिज तक फैला हुआ है।

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जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1890 ई. में वाराणसी के प्रसिद्ध ‘सुँघनी साहू’ परिवार में हुआ था। प्रसाद जी के पिता का नाम देवी प्रसाद था। इनके पिता के यहाँ बहुत से कवि और विद्वान् आते रहते थे । प्रसाद जी का जन्‍म काशी के एक सुप्रसिद्ध वैश्‍य परिवार में हुआा था। मात्र 12 वर्ष की उम्र में उनके पिता सुँघनी जी का देवलोकगमन हो गया । उसके बाद तो जैसे उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । व्यवसाय में नुकसान होने के कारण उनका पूरा परिवार कर्जे में डूब गया । जिसके कारण उनके घर में क्लेश शुरू हो गया । पिता की मृत्यु के दो से तीन वर्ष के बाद ही उनकी माँ की भी मृत्यु हो गई। इस प्रकार बाल्यावस्था में ही उन्हें बहुत विपत्तियों का सामना करना पड़ा ।

जयशंकर प्रसाद की प्रारंभिक पढ़ाई वाराणसी में ही संपन्न हुई, किंतु उन्होंने हिंदी और संस्कृत का अध्ययन घर पर रहकर ही किया उनके प्रारंभिक शिक्षक मोहिनी लाल गुप्त थे। जीवन के अंतकाल में प्रसाद जी क्षयरोग ग्रस्त हो गए। काफी लंबे समय तक इस बीमारी का इलाज़ चलता रहा परन्तु वे इस रोग कि बीमारी से छुटकारा नहीं पा सके और 15 नवंबर 1937 को 48 साल की उम्र में जयशंकर प्रसाद जी इस दुनिया से अलविदा कहकर हमेशा के लिए अमर हो गए।

संक्षिप्त परिचय:

  • नाम : जयशंकर प्रसाद
  • जन्म : 1890 ई०
  • जन्म स्थान : काशी
  • मृत्यु : 15 नवंबर, 1937
  • पिता का नाम : देवी प्रसाद
  • शिक्षा : अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय
  • लेखन-विधा : काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
  • रुचि : साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन

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रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद ने बड़ी मात्रा में साहित्य की रचना की थी। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों क्षेत्रों में अनुपम
रचनाएँ प्रस्तुत की थीं, जो निम्नलिखित हैं-

अरुण यह मधुमय देश हमारा, आत्मकथ्य , आह वेदना मिली विदाई  , चित्रधार , तुम कनक किरन , दो बूंदे , प्रणय गीत , बीती विभावरी जाग री , भारत महिमा , ले चल वहां भुलावा देकर , सब जीवन बीता जाता है , हिमाद्रि तुंग श्रृंग से।

काव्य

“चित्राधार’, ‘कानन कुसुम’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’।

नाटक

‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘करुणालय’, ‘कामना’,
कल्याणी’, ‘परिणय’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’ और ‘एक घूंट’।

कहानी

jaishankar prasad ki kahani -‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’, ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’।

उपन्यास-कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण) ।

जयशंकर प्रसाद जी ने हिंदी-साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की थी और हिंदी की प्रत्येक विधा को समृद्ध किया था। प्रसाद जी का योगदान सचमुच महत्त्वपूर्ण था।

प्रसाद जी की भाषा-शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरस थी। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना उनकी शैली की प्रमुख विशेषता थी। वस्तुतः उनके साहित्य में सर्वतोन्मुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।

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Shankar Kushwaha

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